छाया का रहस्य

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Chhaya ka Rahasya

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पहाड़ियों के बीच बसा ‘शिवपुरा’ गाँव अपनी शांति और प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर था, लेकिन इसी गाँव के एक कोने में स्थित एक पुरानी हवेली ‘छाया महल’ ने हमेशा से गाँव वालों के मन में भय पैदा किया था। लोग कहते थे कि इस हवेली में रात को एक रहस्यमयी छाया घूमती है, जो किसी आत्मा का प्रतीक है। इस छाया को देखने वाले लोग कभी लौटकर नहीं आते।

आकांक्षा, जो एक युवा और जिज्ञासु पत्रकार थी, कुछ समय के लिए अपने काम से छुट्टी लेकर इस गाँव में रहने आई थी। शहर की भागदौड़ से दूर, वह कुछ सुकून भरे पल बिताना चाहती थी। लेकिन गाँव में आने के बाद ही ‘छाया महल’ की रहस्यमयी कहानियों ने उसे अपनी ओर खींच लिया। उसे अजीबोगरीब और असाधारण चीज़ों की खोज करना पसंद था। छाया महल का रहस्य उसे बहुत दिलचस्प लगा, और वह तय कर चुकी थी कि इस पर से पर्दा उठाना ही होगा।

गाँव के लोग आकांक्षा को इस हवेली के करीब जाने से बार-बार मना करते रहे। उन्होंने उसे बताया कि महल में अजीब घटनाएँ होती हैं, और जो भी वहाँ जाता है, वो वापस नहीं आता। लेकिन आकांक्षा की जिज्ञासा को कोई रोक नहीं पाया। उसने खुद से कहा, “यह सिर्फ अंधविश्वास है। कोई रहस्य होगा, और मुझे इसका पता लगाना होगा।”

महल के रहस्य को सुलझाने के इरादे से, आकांक्षा ने गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति, हरिदास से मुलाकात की। हरिदास ने धीमी आवाज़ में बताया, “कई साल पहले इस महल में एक अमीर परिवार रहा करता था। एक दिन उनके साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसका राज आज तक कोई नहीं जान पाया। लोग कहते हैं कि उस रात इस महल से कुछ अजीब आवाजें आई थीं। उसके बाद से यहाँ लोग जाने से डरते हैं। जो गए, वे लौटकर नहीं आए। कहते हैं, वहाँ एक भटकती आत्मा है, जो किसी को नहीं छोड़ती।”

हरिदास की बातें आकांक्षा को रोमांचित कर रही थीं, लेकिन वह इन बातों को अंधविश्वास मानती रही। उसने फैसला कर लिया कि वह खुद इस महल का दौरा करेगी और सच्चाई का पता लगाएगी।

रात के समय, जब गाँव के लोग सो रहे थे, आकांक्षा अपने कैमरे और टॉर्च के साथ छाया महल की ओर निकल पड़ी। गाँव से दूर, जंगल के बीच स्थित महल तक पहुँचने में उसे कुछ समय लगा। चारों ओर गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था, और ठंडी हवा का झोंका उस रात को और भी डरावना बना रहा था। महल दूर से एक विशाल और जर्जर इमारत जैसा दिख रहा था। दरवाजा टूट चुका था, और दीवारों पर धूल और जाले जमे हुए थे।

महल में कदम रखते ही आकांक्षा को एक अजीब सा सिहरन महसूस हुई। वहाँ की हवा में एक अजीब घुटन थी। चारों ओर अंधेरा था, और हर कोने से उसे किसी की उपस्थिति का एहसास हो रहा था। फर्नीचर टूटे-फूटे हालत में थे, और फर्श पर काँच के टूटे हुए टुकड़े बिखरे थे। अचानक उसकी नज़र सामने लगे एक विशाल दर्पण पर पड़ी। उसने दर्पण में खुद को देखा, लेकिन थोड़ी देर में उसकी परछाई हिलने लगी, जबकि वह एकदम स्थिर खड़ी थी। उसकी आंखों में डर की लहर दौड़ गई, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कैमरा निकाला और तस्वीर लेने की कोशिश की। तभी कैमरा बंद हो गया।

अचानक, उसे एक धीमी, गूंजती हुई आवाज़ सुनाई दी, “तुम यहाँ क्यों आई हो?”

आकांक्षा ने तुरंत चारों ओर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। उसकी धड़कनें तेज हो गईं। यह समझते देर नहीं लगी कि कुछ बहुत गलत था। उसने जल्दी से महल से बाहर निकलने का फैसला किया, लेकिन जैसे ही वह दरवाजे तक पहुँची, दरवाजा जोर से बंद हो गया।

अब आकांक्षा समझ गई थी कि वह किसी अदृश्य शक्ति के फंदे में फंस गई थी। उसकी सांसें तेज हो गईं, और चेहरे पर घबराहट साफ दिखाई देने लगी। तभी, उसके सामने एक धुंधली छाया दिखाई दी, जो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगी। वह छाया किसी इंसान की तरह दिख रही थी, लेकिन चेहरा डरावना और अस्पष्ट था।

आकांक्षा ने हिम्मत जुटाकर काँपते हुए पूछा, “तुम कौन हो?”

उस छाया ने धीमी और गूंजती हुई आवाज में जवाब दिया, “मेरा नाम श्रेया था। मैं इस महल की आखिरी वारिस थी। लेकिन मेरे साथ यहाँ कुछ भयानक हुआ। मेरे पिता एक बड़े व्यापारी थे, और उनके व्यापारिक साझेदारों ने हमें धोखा दिया। उन्होंने मेरे पूरे परिवार की हत्या कर दी और हमारी संपत्ति हड़प ली। मेरी आत्मा इस महल में फंसी हुई है। मैं चाहती हूँ कि तुम इस सच्चाई को दुनिया के सामने लाओ, ताकि मुझे मुक्ति मिल सके।”

आकांक्षा यह सुनकर स्तब्ध रह गई। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि इस महल का रहस्य इतना गहरा हो सकता है। उसने श्रेया से पूछा, “मैं तुम्हारी मदद कैसे कर सकती हूँ?”

श्रेया ने उत्तर दिया, “तुम्हें उन लोगों का पर्दाफाश करना होगा जिन्होंने मेरे परिवार को धोखा दिया और उनकी संपत्ति हथियाई। वे अब देश के बड़े व्यापारी हैं और बेफिक्र जीवन जी रहे हैं, लेकिन मेरे परिवार की हत्या का राज आज तक छिपा हुआ है।”

आकांक्षा ने वादा किया कि वह इस सच्चाई को उजागर करेगी। तभी, महल का दरवाजा धीरे-धीरे खुलने लगा। आकांक्षा ने बिना देर किए महल से बाहर भाग निकली।

गाँव लौटने के बाद, आकांक्षा ने तुरंत अपनी खोजबीन शुरू की। उसने श्रेया के परिवार और उनके व्यापारिक साझेदारों के बारे में पुरानी फाइलें और दस्तावेज़ इकट्ठे किए। इन दस्तावेज़ों से उसे पता चला कि श्रेया के पिता के साझेदारों ने उनके खिलाफ साजिश रची थी। धीरे-धीरे, उसने उन लोगों के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर लिए, जो अब देश के बड़े व्यापारी बन चुके थे।

आकांक्षा ने इन सभी सबूतों को अपने लेखों और रिपोर्ट्स के जरिए दुनिया के सामने लाना शुरू किया। उसने उन लोगों के खिलाफ एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसने पूरे देश में सनसनी फैला दी। लोगों को पता चला कि कैसे निर्दोष परिवार को धोखा देकर मार दिया गया और उनकी संपत्ति हड़प ली गई।

सरकार ने तुरंत उन व्यापारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। इसके बाद, आकांक्षा एक बार फिर से ‘छाया महल’ गई। इस बार वहाँ कोई छाया नहीं थी, न ही कोई डरावनी आवाज। महल में शांति थी। आकांक्षा को एहसास हुआ कि श्रेया की आत्मा को अब मुक्ति मिल चुकी थी। वह मुस्कुराई और धीरे-धीरे गाँव की ओर लौट गई।

अब शिवपुरा गाँव में ‘छाया महल’ के बारे में कोई भय नहीं था। महल अब भी खड़ा था, लेकिन उसका रहस्य उजागर हो चुका था।

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