एक चमत्कारी फल

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Chamatkari Phal

प्रिय पाठको ये कहानी है एक चमत्कारी फल की जो एक महान ऋषि मुनि ने एक राजा को दिया |

एक बार की बात है एक राजा था | वह बहुत ही शक्तिशाली, न्याय प्रिय और लोकप्रिय राजा था | वह अपने प्रजा से बहुत ही प्रेम करता था, और उनकी प्रजा भी उनसे बहुत ही प्रेम और उनका सम्मान करती थी | वह अपने प्रजा के हर एक सुख दुःख का ध्यान रखता था | अपने प्रजा के हर एक समस्या का समाधान समय से करता था | उनके राज्य की प्रजा उनसे बहुत ही खुश और प्रसन्न थी | उसके राज्य में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी |

राजा की तीन रानियां थी | वह सभी रानियां राजा से बहुत ही प्रेम करती और उनका अच्छे से ख्याल रखती थी | लेकिन राजा अपने एक रानी से जो सबसे छोटी थी | वो उनसे बहुत ही प्यार करते थे | और उनकी हर मांग को पूरा करते थे | वो रानी उनकी लिए सबसे प्रिय थी | सब कुछ ठीक चल रहा था और सब कुछ ठीक होने के बाद भी एक कमी थी, और वो की उनकी एक भी संतान नहीं थी | इस बात से राजा बहुत ही दुखी थे | और उनकी सभी रानियाँ भी इस बात से दुखी रहती थी | राजा अपने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत सारे उपाय किये जैसे की दान दक्षिणा दिये, पूजा , यज्ञ, हवन करवाए लेकिन कोई सफलता नहीं मिली | राजा की सभी रानियों में से एक रानी जो राजा को सबसे प्रिय थी |

वह बहुत ही हठी और जिद्दी थी | वो जब किसी बात को थान लेती तो उसे पूरा करके ही मानती थी | एक दिन उसने राजा से अपने पुत्र प्राप्ति के बारे में बाते करने लगी और अपनी पुत्र इच्छा को राजा से बताया, और रानी अपने आप को ही दोषी मानते हुए रोने लगी राजा उन्हें दुखी नहीं देखना चाहते थे | राजा उन्हें बहुत ही समझाये लेकिन रानी को इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, रानी तो वैसे ही जिद्दी और हठी थी | राजा बहुत ही परेशान हो गए वे पहले ही बहुत सारे उपाय कर चुके थे | राजा चिंता में पड़ गए की अब हम क्या करे उन्हें कोई उपाय नई सूझ रहा था |

राजा को चिंता के कारण रात में नींद नहीं आ रही थी | उनका मन बहुत ही उदबिग्न था | वे पूरी रात जग के बिताये जैसे तैसे सुबह हुआ और सुबह होते ही वे परेशान होकर अकेले अपना महल छोड़कर बहुत ही दूर एक घने जंगल की ओर अपने मन की शांति के लिए निकल गए | जंगल में घूमते घूमते शाम हो गई उन्हें कोई नहीं मिला वो बहुत ही थके हुए थे | अब उन्हें पानी और आराम की आवश्यकता थी |

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लेकिन दूर दूर तक कुछ दिखाए नहीं दे रहा था | बहुत देर बाद कुछ दूर जाने पर उन्हें एक झोपड़ी दिखाए दी | राजा ने उस झोपड़ी के तरफ आगे बढ़े और जब वे उस झोपड़ी के पास पहुंचे तो उन्हें कुछ आशा की किरण दिखाए दी | उन्होंने देखा की ये तो कुटिया किसी साधु महात्मा की है शायद यहाँ कोई रहता है | उन्होंने आवाज लगाई कोई है कोई है परन्तु कोई उत्तर नहीं मिला | अब क्या करे हारे थके प्यासे वे वही पर निराश होकर एक पत्थर की शिला पे बैठ गए क्यों की वे इतने थके हारे और प्यासे थे की अब उनसे एक कदम और नहीं चला जा सकता |

कुछ देर बाद जब महात्मा जी जो इस कुटिया में रहते थे | यमुना नदी से स्नान करके सायंकाल की संध्या बंदना करने के लिए वापस अपने कुटिया आये तो उन्होंने देखा कोई अपरिचित मानव कुटिया के सामने एक पत्थर के सिला पे बैठा हुआ है | वह बहुत ही थका हुआ और निराश जनक प्रतीत हो रहा है | जब महात्मा जी जैसे ही उनके पास गए राजा उन्हें देखते ही तुरंत खड़े हो गए और हाथ जोड़कर सीस नवाते हुए महात्मा जी को प्रणाम किया | और अपना परिचय दिया तब महात्मा जी आशीर्वाद देते हुए राजा से यहाँ आने का कारण पूछा फिर राजा ने महात्मा जी से थोड़ा सा जल के लिए आग्रह किया जिससे वो अपनी प्यास को बुझा सके |

जैसे ही महात्मा जी ने राजा को जल दिया पीने के लिए राजा ने तुरंत जल से अपनी प्यास बुझाई और जब प्यास मिट गई तब राजा थोड़ा प्रसन्न हुए | लेकिन वो प्रसन्नता बस कुछ ही समय के लिए थी | क्यों की राजा को तो रानी की दुखी होने का चिंता सताए जा रहा था | और वो फिर चिंता जनक अवस्था में ही महात्मा जी से हाथ जोड़कर प्रणाम किये और जाने की आज्ञा मांगते है | लेकिन महात्मा जी अंतर्यामी और सिद्ध पुरुष थे | वे उनके चिंता जनक भाव को पहचान गए और बोले हे राजन आपके मुख पे ये चिंता के भाव क्यों है |

राजा कुछ समय तक चुप रहे और मन ही मन सोचे की इस महात्मा को अपनी ये समस्या को बताऊं या ना बताऊं फिर महात्मा बोले हे राजन आप किस सोच में पड़ गए बताइये राजन क्या समस्या है | तब राजा बोले हे महात्मा जी मेरा राजपाठ बहुत ही सकुशल चल रहा है | मेरी प्रजा भी मुझसे बहुत ही खुश और प्रसन्न है, बस दुःख इस बात का है की मेरी संतान नहीं है | मेरी तीन रानियाँ है और तीनों रानियों में से एक भी से पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई है और राजा अपनी आपबीती महात्मा जी को बताये, महात्मा जी परम ज्ञानी और सिद्ध पुरुष थे | वे राजा से बोले हे राजन मैं आपको तीन फल मंत्र उच्चारण करके दे रहा हूँ , आप ये तीनों फल एक एक करके तीनों पत्नियों को खिला देना जिससे आपकी तीनों पत्नियों को एक एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी और ध्यान रहे की ये फल जूठा ना होने पाए |

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राजा बहुत ही प्रसन्न हुए उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा अब उन्हें जल्द से जल्द अपने महल पहुंच कर ये खुशखबरी अपने तीनों रानियों को देने की बहुत ही तिब्र इच्छा हुई राजा इतना खुश थे की उनकी पास शब्द नहीं थे की महात्मा जी को धन्यवाद कैसे करे फिर राजा महात्मा जी को अपने महल आने के लिए आग्रह किये और महात्मा जी की बात मानते हुए तीनों फल लिए और उनसे आशीर्वाद लेकर अपने महल की ओर वापस चल दिये | कुछ देर बाद रात हो गई और जंगल भी घना था राजा अपने महल से काफी दूर थे | उनको रास्ता पता नहीं था , और रास्ता भी कठिन था , लेकिन जब इंसान को अपने पिता बनने का निराशा से आशा प्राप्त हो जाती है, तो वो खुशी मे इतना मग्न हो जाता है , कि काटे भरे रास्ते भी फूल जैसा नजर आने लगते है, वही राजा के साथ हुआ राजा रात के समय भी चलते रहे चलते रहे सारे कष्टों को सहन करके अपने महल पहुंचे तब तक सुबह हो गया |

महल पहुंचते ही सभी रानियाँ राजा के पास आई और आते ही क्या देखती है की राजा हाथ मे कुछ लिए है, और इतना प्रसन्न है इतना प्रसन्न है की जैसे किसी अंधे को आँख मिल गया हो , और वो अपनी प्रसन्नता सबको बताना चाहता हो | अब रानियों से इस प्रसन्नता का कारण जाने भी रहा नहीं जा रहा था | राजा भी उत्सुक थे, इस ख़ुशख़बरी को देने लिए उन्होंने अपने रानियों से अपनी अपनी आंखें बंद करके अपने अपने हाथ बढ़ाने को कहा, सबने आँख बंद किया और अपने अपने हाथ बढ़ाये राजा ने तीनों फल तीनों रानियों को एक एक करके उनके हाथ मे दे दिये और खाने को कहा जब रानियों ने फल को खा लिया तब राजा ने सारी घटना विस्तार से बताया सभी प्रसन्न थे |
आगे की कहानी अगले भाग मे …………..

लेखक:-अमित कुमार यादव

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