भक्त भगवान और साधु
bhakat bhagavan aur shadhu
एक बार की बात है एक गांव में एक श्रीहरि नाम का एक किसान रहता था उसका पांच बेटी और एक बेटा था। श्रीहरि बहुत ही गरीब आदमी था। वह किसी तरह दूसरे के खेत में काम कर के और उससे जो मिलता था उसी से अपने घर वालो पालन पोसन किया करता था और उसकी बेटिया जो थी वह दी भर दूसरे की बकरी चराती थी और जब शाम होता तो जो अरहर का खेत कट चूका था उसी में से अरहर का दाना बिन कर लती थी जिससे उस दाने का दाल बना कर सब लोग खाते थे। इसी तरह उनका जीवन यापन हो रहा था।
एक दिन की बात है श्रीहरि किसी के खेत से काम करके अपने घर जा रहे थे। तभी रास्ते में उनके पैर में कुछ चुभ गया लेकिन वह उसपे ध्यान नहीं दिए। और घर चले लगे और जब घर जाके देखा तो उनके पैर से खून निकल रहा था। तो सब लोगो ने उसमे कुछ लगाया और फिर सब लोग खाना खाके सो गए। फिर जब सुबह हुआ तो श्रीहरि ने सोचा की चलो चल कर देखे की ऐसा क्या चुभ गया था की मेरे पैर से इतना खून निकल रहा था। फिर वह उस जगह पर जाके देखे तो वहा पर एक नुकीला कुछ दिखाई दिया तब उसने सोचा की आखिर यह क्या चीज है जो इतना चमक रहा है और इतना नुकीला भी है। चलो इसको खोद कर देखते है। फिर श्रीहरि उसको खोदने लगे और कुछ अंदर तक खोदा तो देखा की वह एक त्रिसूल था। अब श्रीहरि उसे देख कर सोच में पड़ गए की यहां पर त्रिसूल कैसे आ गया। चलो इसे पूरा खोद कर देखते है। और फिर उसको पूरा खोदने लगे और फिर जब उसको पूरा खोद देते है तो देखते है। त्रिसूल के निचे एक बक्सा और शिवलिंग है अब उसको देख कर श्रीहरि एकदम सन रह गए। और उसको बस देखे जा रहे थे और जब बक्सा खोला तो उसमे उसमे बस सोना चांदी हिरा मोती था।
फिर श्रीहरि ने उस बक्से और शिवलिंग और त्रिसूल को बाहर निकाला और अपने घर लेके चले गए। जब घर पहुंचे तो उनके हाथ में ये सब देख कर उनके घर वाले बहुत खुश हुए। और उनका बेटा बोला की पापा आप जिस जगह से ये सब लाये है वहा पर एक मंदिर और एक कुआ बनवा दीजिये ताकि हमें कोई पाप न लगे और वहा पर लोग आने जाने लगेंगे और कुआ का पानी भी लोग को पिने को मिलेगा और उसी कुए के पानी से लोग संकर जी पूजा भी कर पाएंगे। बेटे की बात श्रीहरि को बहुत ही अच्छी लगी। फिर वह वैसे ही किये उन्होंने सबसे पहले वहा पर एक मंदिर बनवाया और फिर जाके कुआ खोदने का काम चालू कर दिया। और कुछ दिन में वह कुआ भी बन के तैयार हो जाता है। और अब वहा पर लोग आने जाने लगते है और जो सोना चांदी मिला था श्रीहरि को उनको बेच कर वह बहुत ही अमीर आदमी बन जाते है और फिर अपनी पाचो बेटियों की शादी बहुत ही अच्छे घर में कर देते है। जिससे वह सब भी अपने ससुराल में बहुत सुखी जीवन जी रही थी। और सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था। अब उनके पास कोई गरीबी नहीं थी वह एक अमीर आदमी बन गए थे।
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तभी एक रात को जब श्रीहरि सोये थे तभी उनको रात में उनको एक सपना आया जिसमे यमराज जी बोल रहे थे की श्रीहरि अब तुम्हारा समय आ गया है अब तुमको बहुत जल्द ही मै लेके चला जाऊंगा यहां से। और फिर एक दिन ऐसा ही हुआ और श्रीहरि का देहांत हो गया। जब उसनका देहांत हो गया तो अब सारा काम काज उनके बेटे को देखना पड़ा और अब सब कुछ उनका बेटा देखने लगा जिसका नाम था हरिदास अब हरिदास ही सब कुछ देखने लगा। फिर एक दिन उसकी पाचो बहनो ने कहा की अब तुम शादी कर लो क्यों की तुम्हारे सिवा कोई नहीं है घर पर। फिर हरिदास ने एक अनामिका नाम की लड़की से शादी कर लिया । और उसको अपने घर लेके आ गया। अनामिका एक बहुत ही समझदार लड़की थी। लेकिन हरिदास अच्छा आदमी नहीं था। जब से उसके पिता का मृत्य हुआ था तब से वह बहुत ही ज्यादा पैसा खर्च करने लगा। लेकिन अनामिका एक समझदार लड़की थी और वह उसे समझाने की कोशिश कराती लेकिन वह उसकी बात नहीं मान रहा था। अब वह धिरे धिरे अत्याचारी बन गया था अब वह शिव के मंदिर में नहीं जाता था। लेकिन उसकी पत्नी हमेसा मंदिर में जाके पूजा पाठ किया करती थी।
एक दिन की बात है कुछ पुजारी लोग उसी रास्ते जा रहे थे तो उन्होंने देखा की रास्ते में एक मदिर है तो उन्होंने सोचा की चलो चल कर यहां पर थोड़ा आराम करते है। और फिर सभी पुजारी मंदिर में चले गए। तभी अनामिका ने देखा की मंदिर में कुछ साधु लोग आये है। फिर वह उन लोगो के पास में जाती है और उनका पैर छूती और पूछती है की महाराज आप लोग कौन है। फिर साधु बताते है की हम लोग इसी रास्ते कही और जा रहे थे तो यहां पर मंदिर देखा है तो रुक गए है और आज यही पर रुकने का बेवस्था बनाये है। बेटा थोड़ा सा आटा ला दो हम लोग यही पर बना कर खाएंगे और आज यही पर आराम करेंगे। फिर अनामिका उनको सारा सामान ला कर दे देती है। तब तक हरिदास एक घोड़े पर बैठ कर आया और देखा की कुछ साधु मंदिर के अंदर बैठे है और वहा पर कृतन गए रहे है। तब हरिदास जाके उनको बोलता है की तुम लोग कौन हो यहां पर क्यों आये हो चले जावो यहां से यहां पर किसी को आने का अनुमति नहीं है। तब साधु बताते है की बेटा हमने तुम्हारी बीबी से पूछ कर यहां पर आसन लगाया है अगर तुमको अच्छा नहीं लगता तो हम लोग यहां से चले जायेंगे। फिर हरिदास जाके अपने बीबी को डाटने लगा और बोला की तुमने मेरे से बिना पूछे बिना कैसे इन साधुओं रहने दिया यहां पर। फिर उसकी बीबी उसको डाट कर चुप करा देती है।
अब सब साधु लोग वहा पर खाना पीना करते है और पूरी रात भजन कृतन करते है और सब सुबह होता है तब अब सभी साधु वहा से जाने की तैयारी करते है। तभी उन साधुओ का जो हेड थे वह हरिदास के घर जाने लगे तब एक चेला ने उनको रोका और कहा की आप क्यों जा रहे है मत जाइये। हरिदास अच्छा आदमी नहीं है। वह बहुत ही बेकार आदमी है उससे मिलने की क्या जरूतर मत जाइये। तब साधु बोलते है की नहीं मुझे जाने दो हमने उसका भोजन किया है तो हमारा भी कुछ फर्ज बनता है। फिर साधु बाबा जा के हरिदास का दरवाजा खटखटाते तब हरिदास और उसकी बीबी एक साथ में घर से बाहर निकलते है। तब हरिदास गुस्से में बोलता है की अभी तक आप लोग गए नहीं यहां से जल्दी जाइये। क्यों रुके है यहां पर। तब उसकी बीबी उसको डाट कर बोलती है। फिर साधु बाबा कहते है की बेटा मेरी एक बात बनोगे क्या। तब हरिदास बोलता है की मै क्यों आप की बात मानूंगा आप है कौन मेरे। तब बाबा बोलते है की बेटा मेरी बस एक बात याद रखना। जब भी तुम्हारा बेटा हो उसका नाम नारायण रखना और यह कह कर चले गए।
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फिर कुछ दिन बाद उसके घर पर एक बेटा हुआ तो उसकी बीबी ने साधु की बात को याद कर के उसका नाम नारायण रखा। और फिर धिरे धिरे समय बीतता गया और एक समय ऐसा आया की अब हरिदास बूढ़ा होने लगा और अब जब भी जहा कही भी जाता अपने बेटे के साथ में जाता था। और कुछ भी होता था तो अपने बेटे को बुलाता नारायण बेटे इधर आवो नारायण बेटा वहा जावो इसी तरह जब भी उसको कोई काम होता तो बोलता नारायण बेटा ये कर दो नारायण बेटा वो कर दो। और ऐसे ही दिन में कई बार नारायण नारायण किया रहता था। एक दिन की बात है सब वह सोया था तभी वह एक सपना देखा की कुछ कुछ यमराज के दूत उसे लेने आये है और उसे एक रस्सी में बाढ कर ले जा रहे है तभी वह अपने बेटे को कुछ दूर पे देखता है और जोर जोर से चिल्लाने लगता है नारायण मुझे बचावो नारायण मुझे बचावो अब उसके मुँह से नारायण का नाम सुन कर वहा पर नारायण के अंस आ जाते है और यमराज के दूत को मना करने लगते है की तुम इसको नहीं ले सकते क्यों की यह मरने से पहले नारायण का नाम लिया है तुमको इसे छोड़ना पड़ेगा। तब यमराज के दूर बोलते है की ये तो अपने बेटे को बुला रहा था। लेकिन वह नारायण के अंस नहीं मानते है और कहते है की ये जरुरी नहीं है उसने अपने बेटे का नाम लिया जरुरी ये है उसने नारायण कहा है तुम इसे नहीं ले जा सकते है । फिर लास्ट में यमराज के दूत को हार मान कर वहा से जाना पड़ता है। तब हरिदास को एहसास होता है की भगवान के नाम में कितना ताकत है। और तब से वह सभी गलत काम छोड़ देता है और भगवान की भगती में लग जाता है।
लेखक :- अर्जुन आइना
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