तिरियाचरित्र भाग -1
Tiriyacharitr part-1
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बहुत समय पहले की बात है एक शेरसिंह नाम का एक राजा रहा करता था शेरसिंह का दरबार बहुत ही बड़ा था और राजा के राज्य के एक छोटे से गांव में एक लड़का अपनी बूढी माँ के साथ रहता था जिस लडके का नाम सोनू था और सोनू बहुत ही गरीब था सोनू इतना गरीब था की उसके घर में कभी कभी खाने तक का सामान नहीं रहता था इस सब गरीबी को देखते हुए एक दिन सोनू अपनी माँ से बोला माँ मै परदेश जाऊंगा और वह से कुछ पैसा कमा के लाऊंगा जिससे अपनी गरीबी कुछ दूर होगी तो ये सब बाते सुन कर उसकी माँ कहती है की तुम अभी बहुत छोटे हो और अभी तुम्हारी उम्र बहुत कम की है तुम कैसे बाहर जाके कमाओगे तब सोनू बोलता है की नहीं माँ मै परदेश जाऊंगा और कमा के धन लाऊंगा
फिर अपनी माँ से कहता है की मुझे सात नाव और सात बोरी भुजा और एक बोरा गुड़ देदो फिर उसके बात को सुन कर उसकी वह से उठी और जो कुछ उसके पास था उन सब को बेच कर उसके लिए सात नाव और सात बोरा भुजा और एक बोरा गुड़ का बेवस्था की फिर सोनू ये सारा सामान लेकर नदी के किनारे गया और सातो नाव को एक साथ बाढ़ दिया और सात बोरा भुजा और एक बोरा गुड़ को नाव पर लाढ कर अपनी माँ का आशिर्बाद लेके परदेश के लिए रवाना हो जाता है और फिर सोनू नाव को धिरे धिरे लेके चल देता है नदी के रास्ते धिरे धिरे चलता रहता है
तब तक कुछ दूर पर एक अहीरिन दही लेकर जा रही थी और तो रास्ते में एक बिल्ली ने उस दही को खा कर नुकसान कर दी थी तो वह औरत उस बिल्ली को मारने के लिए दौड़ा लेती है और वो बिल्ली भागते भागते नदी के तरफ आ जाती है और उस अहीरिन के साथ उसका पति और उसका बेटा भी था जो बिल्ली को मारने के लिए दौड़ा रहे थे तभी सोनू देखता है की एक बिल्ली को लोग दौड़ाते हुए आ रहे है मारने के लिए तो सोनू ये सब देख उन लोग को रोकता है और बोलता है की ” हां हां रुको रुको क्यों इस बेजुबान को आप लोग मार रहे हो इस बेजुबान ने क्या किया है ” तब अहीरिन बोलती है इस बिल्ली ने मेरी दही खा ली और दही नुकसान कर दी है मै इसको मार दूंगी तब सोनू बोलता है की नहीं आप इसको मत मारो ऐसे छोड़ दो और जो नुकसान हुआ है उसका पैसा मुझसे लेलो तब अहीरिन बोलती है की मेरा 2 आना का नुकसान हुआ है उसको दे दो फिर सोनू उसको पैसा देके बिल्ली को उनसे आजाद करा लेता है और फिर बिल्ली आकर नाव पर बैठ जाती है
उसके बाद सोनू नाव को चलाने लगता है और आगे जाने लगता है और फिर चलते चलते कुछ दूर पर देखता है की सामने से एक किसान अपने दस बीस साथीवो को लेके एक चूहे को दौड़ाते हुए लेके आ रहा है और भागते भागते चूहा नदी के किनारे आ गया तो सोनू सोचता है की ये किसान लोग इस चूहे को क्यों दौड़ा रहे है आखिर क्या बात है जो इतने लोग एक चूहे को दौड़ा रहे है और फिर नाव को किनारे पर रोक कर जाके पूछता है की “अरे भाई लोग आप लोग ये क्या कर रहे हो आप लोग क्यों इस चूहे को दौड़ा रहे हो ” तब एक किसान बोलता है की इस चूहे ने मेरा सारा फसल नुकसान कर दिया है मै इसको छोडूंगा नहीं इसको मार दूंगा फिर सोनू बोलता है की नहीं नहीं क्यों मारोगे इसको | आप का नुकसान हुआ है उसका पैसा आप मुझसे लेलो और इस चूहे को मत मारो तब किसान बोलता है की मेरा दस रुपये का नुकसान हुआ है मुझे देदो तब सोनू उसको दस रुपये निकल कर देता है और फिर सभी किसान चले जाते है फिर चूहा भी आके नाव में बैठ जाता है
फिर सोनू अपनी नाव को आगे की तरफ हाकने लगता है और धिरे धिरे आगे बढ़ाता रहता है तभी कुछ दूर जाने के बाद फिर सोनू देखता है की कुछ मछुआरे नदी में एक जाल में एक कछुआ को फसा लिए है और उसको बेचने के लिए उसकी बोली लग रही है किकाओं कितना में ले जायेगा इस कछुए को और सब लोग उसकी बोली लगा है कोई बोल रहा है दस रुपया तो कोई बोलरहा है बारह रुपया तो कोई बोल रहा है तेरह रुपया ऐसे ही सब लोग अपना अपना बोली लगा रहे है तब तक सोनू पहुँचता है उन मछुआरों के पास जाता है औ२ बोलता है की “अरे भाई क्यों इस कछुए को बेच रहे हो इसे नदी में रहने दो इसका भी जीने का हक़ है आप क्यों इसका जान लेना चाहते हो ” तभी एक मछुआरा बोलता है की ये हम लोग का रोजी रोटी का सवाल है और हम लोग इसे नहीं बेचेंगे तो हम लोग का खर्चा कैसे चलेगा तब सोनू बोलता है की इस कछुए को छोड़ दो और इसका जो दाम हुआ वो मुझसे लेलो तब एक मछुआरा बोलता है की इसका दाम है पचास रुपये तब सोनू उसको पचास रूपया देता है और तो वो सभी उसको छोड़ देते है और चले जाते है तब कछुआ भी नाव में आके बैठा जाता है
फिर सोनू अपनी नाव को लेके आगे की तरफ बढ़ जाता है और फिर कुछ दूर जाने बाद देखता है की एक शिकारी अपने साथ में बहुत सारे तोता को पकड़ कर कहीं लेके जा रहा होता है फिर सोनू उसको रोकता है और पूछता है की ” अरे भाई इतने सारे तोते को कहा लेके जा रहे हो इतने सारे तोते को लेके इतने सारे तोते का क्या करोगे तुम ” तब शिकारी बोलता है मै इन सब को बाजार लेके जा रहा हु बेचने के लिए क्यों की मेरा यही बेवसाये है जिससे मै कुछ पैसा कमा पता हु और अपने परिवार का पालन पोसन करता हु तब फिर सोनू बोलता है की तुम इन तोतो को मत बेचो और बताओ की कितना पैसा हुआ इस सब तोतो का वो मुझसे लेलो और इन सब तोतो को छोड़ दो फिर शिकारी बताता है की सभी तोते बिस रुपये के है इतना मुझे देदो तब सोनू उस शिकारी को बीस रूपया दे देता है तो शिकारी बीस रुपया लेके उस सभी तोतो को छोड़ देता है और चला जाता है उसके बाद फिर ये सभी तोते सोनू की नाव में आके बैठ जाते है
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और फिर सोनू नाव को लेके आगे बढ़ जाता है और नाव को धिरे धिरे चलने लगता है और जैसे ही कुछ दूर आगे जाता है तो देखता है की एक सपेरा एक साप को पकड़ के ले जा रह है तब सोनू अपनी नाव को रोक कर उसपे से उतर जाता है और सपेरे के पास जाके बोलता है की तुम इस साप को लेके कहा जा रहे हो भाई तब सोनू की बात को सुन कर सपेरा बोलता है की साहब ये मेरे जीने का जरिया है मै साप को पकड़ता हु तो लोग मुझे उसका पैसा देते है जिससे मेरा जीवन यापन होता है तब सोनू बोलता है की तुम एक काम करो तुम इस साप को छोड़ दो जो इसका पैसा हुआ वो मुझसे लेल लो तब सपेरा बोलता है की इसका १०० रुपया हुआ वो मुझे देदो मै साप को छोड़ दूंगा तब सोनू उसको १०० रुपया दे देता है और फिर सपेरा उस साप को छोड़ कर चला जाता है और जैसे वो जाता है तब साप भी नाव पर आके बैठ जाता है और सोनू से बोलता है की तुम मुझे घर छोड़ दो नहीं तो मै तुम्हे काट लूंगा अब साप की बात सुन कर सोनू को टेंशन हो जाता है और सोचता है की मैंने इसे बचाया है और ये मुझे ही काटने के लिए बोल रहा है एक काम करता हु इसको इसके घर छोड़ देता हु फिर सोनू उस साप से पूछता है की कहा है तुम्हारा घर तब साप बोलता है की मेरा घर पातालपूरी में है और जो आगे जंगल है उसी के बिच से एक रास्ता है तुम लेके चलो और फिर साप सोनू को लेके पातालपुरी पहुंच जाता है
फिर जैसे ही सोनू पातालपुरी में पहुँचता है तो वह के जो साप थे वो सोनू को काटने के लिए दौड़ते है तभी साप उन सब को रोकता है और कहता है की ख़बरदार अगर किसी ने भी इसे कुछ किया तो ये मेरा दोस्त है और इसने मेरी जान बचाई है तब जाके सभी साप रुक जाते है और और उसे देखने लगते है फिर उस साप के माता पिता नाग और नागिन आते है और देखते है की उनका बेटा है जिसकी जान इस आदमी ने बचाया है तब सभी साप मिल कर सोनू का आदर सत्कार करते है और सोनू को पानी पिलाते है और फिर जब सोनू वहा से जाने लगता है तब साप के पापा उसे एक मड़ी देते है और कहते है जो तुम्हारे घर में चूल्हा है जिसपे तुम खाना बनाते हो इसको उसके ऊपर रख कर जो तुम मागोगे वो तुम मिल जायेगा फिर सोनू उस मड़ी को रख लेता है और जब जाने लगता है तो सभी साप मिल कर उसे बहुत सारा हिरा मोती और धन देते है जिसको लेके सोनू वहा से चल देता है तब साप चिल्लाकर बोलता है की दोस्त कभी भी तुम्हारे ऊपर कोई मुसीबत आन पड़े तो तुम अपने इस दोस्त को एक बार याद जरूर करना तब सोनू बोलता है की ठीक है दोस्त और फिर सोनू पातालपुरी से निकल कर उसी जंगल में आ जाता है जिस जंगल के रास्ते वो गया था
फिर जंगल में अपने सारे जानवर दोस्तों से बोलता है की भाई आप लोग अब यही से चले जावो क्यों की मुझे अभी बहुत आगे तक जाना है तो आप लोग कहा तक जावोगे और यह इस जंगल में आप लोग आराम से रह भी सकते हो यह आप लोगो को परेशानी नहीं होगी तो आप लोग एक काम करो आप लोग यही पर रह जावो सोनू की ये बात सुन कर कोई भी जानवर तैयार नहीं होता है वहा पर रहने के लिए सभी बोलते है नहीं हम सभी तुम्हारे साथ ही चलेंगे लेकिन सोनू के समझाने के बढ़ सभी जानवर मन जाते है और नाव से निचे उतर जाते है और जब सोनू उन सभी ब्यय बोल कर आगे जाने लगता है तो सभी जानवर कहते है की देखो सोनू भाई आप ने हमारी बहुत मदद की अगर जीवन में कभी भी कोई प्रॉब्लम आये तो हमें एक बार जरूर याद करना दोस्त हम अपनी जान देकर आप की रक्छा करंगे फिर सोनू बोलता है की ठीक दोस्तों अब मै चलता हु इतना बोल कर सोनू आगे निकल जाता है
फिर सोनू आगे बढ़ते बढ़ते और धिरे धिरे बहुत दूर चला जाता है और सोनू एक महीने तक चलते ही रहता है और फिर चलते चलते एक दिन वह सिला पर्वत पर पहुंच जाता है और फिर सोनू नाव को नदी के किनारे रोक कर उतर जाता है फिर देखता है पर्वत के ऊपर एक बहुत ही बड़ा बरगद का पेड़ है फिर सोनू सोचता है मुझे भूख भी लगी है और थोड़ा थकन भी हो गया एक काम करता हु की वहा उस पेड़ के निचे जाते थोड़ा समय आराम करता हु और कुछ खा भी लेता हु उअके बाद सोनू भुजा और गुड़ को लेकर ऊपर पेड़ के निचे गया और उसको खाने लगा और खाते खाते उसके दिमाग में एक उपाय आया और उसने खाना खाया और कुछ भुजा और गुड़ को एक साथ मिला कर पेड़ के निचे फैला दिया और फिर अपनी नाव में आ के बैठ गया फिर जैसे ही शाम हुई तो वहा पर बहुत सारे पक्षी आये और उसे खाने लगे और खाने के बाद वो सब वही पर बिसथा कर देते थे जिसको सोनू उठा कर लाता और उसका उपला बना लेता ऐसी तरह बहुत दिन तक चलता रहा और ऐसा करते उसको एक साल हो गया और उसकी नाव भी उपलों से भर गई थी तब सोनू सोचता है ही अब मुझे अपने घर जाना चाहिए और फिर सोनू अपनी सभी नाव को लेके अपने घर के लिए चल देता है
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फिर सोनू नदी के रास्ते अपने घर के लिए चलता सुरु कर देता है धिरे धिरे सोनू नाव को चलाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ता रहता है और फिर एक महीने के बाद वो अपने घर पर पहुँचता है और अपनी से बुलाता है माँ माँ देखो मै आ गया कमा कर तभी उसकी माँ उसकी आवाज को सुन कर दौड़ती हुई आती है और अपने बेटे को देख कर बहुत खुश होती और उसे अपने सीने से लगा लेती है और फिर देखती है सोनू बहुत ज्यादा उपले लेके आया है तब उसकी माँ उससे पूछती है की तुम इस उपले का क्या करोगी अपने घर में बहुत लकड़ी है जिससे हम लोग खाना बना सकते है तभी सोनू बोलता है की माँ तुम टेंशन मत लो क्या हुआ जो मै पैसा नहीं कमा पाया है ऐसी को बेच कर अपना जीवन यापन करेंगे
फिर अचानक एक दिन गांव में सभी के घर से लकड़ी खत्म हो जाती है तब सोनू की उसी उपले में से पांच उपले लेके आती है खाना बनाने के लिए और खाना बना कर सोनू और खुद दोनों लोग खाते है और खा कर सोने चले जाते है फिर जब सुबह होता है तो उसको माँ उठती है और रोज की तरह झाडू पोछा करती और जब चुल्ह के अंदर से राख बाहर निकालती तो देखती है की की राख में बहुत छोटे छोटे हिरे और मोती के टुकड़े है जिसको देख कर उसको माँ बहुत कुश हो जाती है और अपने बेटे को जगा कर वहा पर लाती है दिखती है जिसको देख कर बहुत खुश होता है और सोचता है की जब पांच उपले में इतना हिरे और मोती के टुकड़े मिले है तो सभी उपले में कितना होगा और फिर अपनी माँ से कहता है की माँ तुम आज रात में पूरी झोपड़ी को जला देना और उसकी माँ वैसा ही करती है जैसा सोनू बोलता है फिर वो सभी हिरे और मोती के दुकड़े को ईकठ्ठा करते है और उसे एक जगह रख देते है और फिर जैसे ही ये बात गांव में लोगो को पता चलता है तो सभी लोग बहुत परेशान हो जाते है तभी अचानक उसको साप ने जो मड़ी दिया था उसकी याद आती है और सोनू अपने घर में जाता है और अपने चूल्हे के ऊपर रख कर बोलता है की ये मड़ी मेरे इस छोटे से घर को एक महल जैसा बनवा दो और जैसे ही ये बात सोनू ने बोली मड़ी रातो रातो उसके घर को महल में बदल दिया
आगे की कहानी अगले भाग में
लेखक:- अर्जुन आइना
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